अक्षय तृतीया व्रत वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को किया जाता है।इस दिन स्नान ; दान ; जप ; तप ; हवन ; स्वाध्याय ; तर्पण आदि जो भी कर्म किये जाते हैं ; वे सब अक्षय हो जाते हैं।इसीलिए इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है।परन्तु मत्स्यपुराण के अनुसार इस दिन अक्षत द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है।इसलिए इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है --
अक्षतैः पूज्यते विष्णुस्तेन साक्षया स्मृता।
यहाँ ध्यातव्य है कि सामान्य रूप से विष्णु-पूजन मे अक्षत निषिद्ध है।इसलिए केवल अक्षय तृतीया को ही अक्षत से विष्णु-पूजन करना चाहिए। शेष दिनो मे अक्षत के स्थान पर सफेद तिल का प्रयोग किया जाता है।
कथा ---
------ प्राचीन काल मे शाकल नगर मे धर्म नामक एक धर्मात्मा वणिक् रहता था।उसे एक कथा के प्रसंग मे ज्ञात हुआ कि वैशाख शुक्ल तृतीया को दिया गया दान अक्षय हो जाता है।अतः उसने उक्त तिथि को सर्वप्रथम गंगा-स्नान एवं तर्पण किया।उसके बाद घर आकर ब्राह्मणों को अन्न आदि अनेक वस्तुयें दान कीं।यद्यपि उसकी पत्नी दान करने से रोकती थी।फिर भी वह प्रत्येक अक्षय तृतीया को दान अवश्य करता था।उसके प्रभाव से वह अगले जन्म मे कुशावती नगरी का विख्यात एवं दानशील राजा बना।
विधि --
------- व्रती प्रातः स्नानादि करके संकल्प पूर्वक भगवान विष्णु का विधिवत् पूजन करे।उसके बाद ब्राह्मणों को अनेक प्रकार के रस ; अन्न ; मधु ; जलपूर्ण घट ; फल ; खड़ाऊँ ; गौ ; भूमि ; स्वर्ण ; वस्त्र आदि का दान करे।मत्स्यपुराण के अनुसार व्रती पहले अक्षत युक्त जल से स्नान करे।फिर अक्षत से विष्णु-पूजन करे।उसके बाद अक्षत और सत्तू का दान करना चाहिए।बाद मे स्वयं भी उसी अन्न का भोजन करे।
माहात्म्य --
----------- इस दिन जो भी दान ; धर्म आदि किया जाता है ; वह अक्षय हो जाता है।दानकर्ता के सभी पाप ताप नष्ट हो जाते हैं।उसे सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति हो जाती है।
Sunday, 6 March 2016
अक्षय तृतीया व्रत
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