यह व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अन्तिम तिथि अर्थात् पूर्णिमा को किया जाता है।व्रत के लिए चन्द्रोदय-व्यापिनी तिथि एवं स्नानादि के लिए सूर्योदय-व्यापिनी पूर्णिमा ग्राह्य है।
शास्त्रीय दृष्टि से पूर्णिमा पर्व तिथि मानी जाती है।इस दिन व्रत स्नान दान आदि का विशेष महत्व है।
विधि --
----- व्रती प्रातः स्नानादि करके व्रत का संकल्प ले।दिन भर भगवन्नाम स्मरण करे।शाम को चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान करे।
माहात्म्य --
----------- इस व्रत को करने से मनुष्य को चन्द्रमा की असीम अनुकम्पा की प्राप्ति होती है।
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