Monday, 7 March 2016

महामृत्युञ्जय स्तोत्र

           मानव-शरीर रोगों का मन्दिर है।इसमे आये दिन नये-नये रोगों का प्रादुर्भाव होता रहता है।इन रोगों के कारण मनुष्य की अपमृत्यु की संभावना बन जाती है।इस अपमृत्यु को दूर करने के लिए महामृत्युञ्जय स्तोत्र एक अमोघ साधन है।रोगग्रस्त व्यक्ति के शीघ्र स्वास्थ्य-लाभ के लिए इसका पाठ अत्यन्त लाभकारी है।यदि कोई व्यक्ति इसका नित्य पाठ करे तो उसे किसी दुर्घटना या अपमृत्यु का भय नही रहता है।
            मृत्युञ्जय का अर्थ है -- " मृत्युं जयति इति मृत्युञ्जयः " अर्थात् जो मृत्यु को भी जीत लेता है ; उसे मृत्युञ्जय कहा जाता है।अतः प्रत्येक आस्तिक व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक इसका पाठ करे।
विधि --
-----       पाठ करने वाले को चाहिए कि वह प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर शुद्ध स्वच्छ वस्त्र धारण कर शिवालय या शिवलिंग के समीप बैठ जाय।आचमन प्राणायाम गणेश स्मरण आदि करके दाहिने हाथ मे थोड़ा जल लेकर निम्नलिखित मंत्र पढ़कर जल जमीन पर गिरा दे --
        ऊँ अस्य श्रीमहामृत्युञ्जयस्तोत्र मंत्रस्य श्रीमार्कण्डेय ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः श्रीमृत्युञ्जयो देवता गौरी शक्तिः मम सर्वारिष्टसमस्तमृत्युशान्त्यर्थं सकलैश्वर्य - प्राप्त्यर्थं च जपे विनियोगः।
         अब हाथ मे अक्षत पुष्प लेकर भगवान का ध्यान करें --
   चन्द्रार्काग्निविलोचनं स्मितमुखं पद्मद्वयान्तःस्थितं
    मुद्रापाशमृगाक्ष - सूत्रविलसत्पाणिं हिमांशुप्रभाम्।
   कोटीन्दु-प्रगलत्सुधाप्लुततनुं हारादिभूषोज्ज्वलं
  कान्तं विश्वविमोहनं पशुपतिं मृत्युञ्जयं भावयेत्।।
  ऊँ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्।
  नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।1।।
  नीलकण्ठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम्।
  नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।2।।
  नीलकण्ठं विरूपाक्षं निर्मलं निलयप्रभम्।
   नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।3।।
   वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्।
   नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।4।।
   देवदेवं जगन्नाथं देवेशं वृषभध्वजम्।
   नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।5।।
   गङ्गाधरं महादेवं  सर्वाभरणभूषितम्।
   नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।6।।
    अनाथः परमानन्दं कैवल्यपदगामिनम्।
    नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।7।।
    स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टि-स्थिति-विनाशकम्।
   नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।8।।
    उत्पत्ति-स्थिति-संहारकर्तारमीश्वरं गुरुम्।
    नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्युः करिष्यति।।9।।
   मार्कण्डेयकृतं स्तोत्रं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
  तस्य मृत्युभयं नास्ति नाग्निचौरभयं क्वचित्।।10।।
    शतावर्तं प्रकर्तव्यं सङ्कटे कष्टनाशनम्।
 शुचिर्भूत्वा पठेत् स्तोत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम्।।11।।
   मृत्युञ्जय महादेव त्राहि मां शरणागतम्। जन्ममृत्यु-जरारोगैः पीडितं कर्मबन्धनैः।।12।।
   तावतस्त्वद् -गतप्राणस्त्वच्चित्तोऽहं सदा मृड।    इति विज्ञाप्य देवेशं त्र्यम्बकाख्यमनुं जपेत्।।13।।
  नमः शिवाय साम्बाय हरये परमात्मने।
   प्रणतक्लेशनाशाय योगिनां पतये नमः।।14।।
   शताङ्गायुर्मन्त्रः -- ऊँ ह्रीं श्रीं ह्रीं ह्रैं ह्रः हन हन दह दह पच पच गृहाण गृहाण मारय मारय मर्दय मर्दय महामहाभैरव भैरव-रूपेण धुनुय धुनुय कम्पय कम्पय विघ्नय विघ्नय विश्वेश्वर क्षोभय क्षोभय कटु कटु मोहय हुं फट् स्वाहा ; इति मन्त्रमात्रेण समाभीष्टो भवति।
     इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे मार्कण्डेयकृतं महामृत्युञ्जयस्तोत्रं सम्पूर्णम्।

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